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STURUCTURE OF NEPHRON IN HINDI NOTES

 STURCTURE OF NEPHRON ( नेफ्रॉन की संरचना ) 

   नेफ्रॉन का हमारे शरीर में क्या कम होता है , ये कैसे कम करता है, रक्त को छानकर  मूत्र का निर्माण कैसे होता है , इन सब सवालों का जवाब पाने के लिए , ये पेज आपकी मदद करने वाला है ,
जो लोग नेफ्रॉन को पहली बार जानने की कोसिस कर रहे है मै उनके लिए एक उदाहरण पेश कर रहा हू 

किसी कंपनी या फैक्ट्री में हमारे खाने पिने तथा पहनने कि वस्तुवे तैयार की जाती है लेकिन उसी के साथ - साथ कुछ अपशिस्ट पदार्थो का निर्माण भी होता है जिनका उन कंपनी या फैक्ट्री में कोई काम नहीं होता जिसे एक पाइप के द्वारा कंपनी से बाहर निकाल दिया जाता है , 

ठीक इसी प्रकार हमारे शरीर में नेफ्रॉन का कार्य होता है , यह रक्त से आवश्यक तत्वों को छानकर आवश्यक अंगो तक पहुचाता है तथा अपशिष्ट पदार्थो को मूत्र के रूप में शरीर से बहार निकाल देती है 

यदि मै Water Purifier और नेफ्रॉन की तुलना करू तो भी एक उदाहरण सामने आता है 


ऊपर दिए गए दोनों चित्रों में कुछ समानता देखने को मिल जाती है 
नेफ्रॉन में धमनी ( Artery)  जो पुरे शरीर से अशुद्ध रुधिर को नेफ्रॉन में लाने का कम करती  है , फिर ये धमनी आगे कई शाखाओ में विभाजित हो जाती है जिन्हें  धमनी शाखा ( Renal Artery )  के नाम से जानी  जाती है  जो फिर से विभाजित होकर एक शाखा का निर्माण करती है जिसे (Afferent artirioles) अभिवाही धमनिका के नाम से जानी जाती है , Afferent artirioles  बहुत सारी पतली - पतली शाखाओ में विभाजित होकर जाल या गुच्छे जैसी संरचना बना लेती है जिसे गलोमेरुलस ( Glomerulus)  के नाम से जाना  जाता है , इसी ग्लोमेरूल्स में फिल्ट्रेशन का कार्य प्रारंभ होता है , 
ग्लोमेरुलस कि सभी शाखाये एक होकर एक नली का निर्माण करती है जो शुद्ध रुधिर को शरीर में ले जाने का कार्य करती है इस नली को अपवाही धमनिका (Efferent Artirioles)  कहते है . 






ग्लोमेरुलस कप जैसे संरचना से घिरी रहती है जिसे बोमन सम्पुट ( Bowman's Capsule)  के नाम से जाना जाता है ब्लड फ़िल्टर होकर इसी कैप्सूल के माध्यम से मूत्र का निर्माण होता है 
बोमन सम्पुट से निकली नली आगे चलकर कुंडलित हो जाती है जिसे PCT ( Proximal Convoluted Tubules) समीपस्थ कुंडलित नलिका कहते है जो निचे कि तरफ बढ़ते  descending order  में लूप लाइक structure बनाती है जो लूप ऑफ़ हेनले (Loop of Henley, Henle Loop)  के नाम से जानी जाति है , इसका मुख्य कार्य मूत्र कि उचित सांद्रता बनाये रखना होता है 

 लूप ऑफ़ हेनले दो प्रकार का होता है
 
1- वल्कुटीय वृक्काणु ( Cortical Nephron) -  जब हेनले लूप छोटा एवं मध्याश में कम धसा होता है तो                                                                        उसे  Cortical Nephron कहते है 

2- जुकस्ट मध्यांशी वृक्काणु ( Juxta Medullary Nephron) -  जब हेनले लूप बड़ा एवं मध्यांश में अन्दर                                                                                           तक धसा होता है तो उसे Juxta                                                                                                          Medullary Nephron  कहते है 



लूप ऑफ़ हेनले आगे चलकर in assending order  ऊपर कि ओर फिर से कुंडलित संरचना बनाती है जिसे DCT ( Distal Convoluted Tubules) दूरस्थ कुंडलित नलिका के नाम से जाना जाता है 
यह नलिका Collecting Duct से जाकर मिलती है जो सीधे मुत्रासय में जाति है 





औसतन वृक्क से प्रतिदिन 1100-1200 मिली रुधिर छनत है , जो हृदय के निलय द्वारा प्रतिमिनट पंप किये गए रुधिर का 1/5 वा भाग होता है 


मूत्र का PH ( Percentage of Hydrogen) 5-8 होती है , जो भोजन पर निर्भर करती है जैसे उच्च प्रोटीन युक्त तथा फलो से अम्लीयता तथा सब्जियों से मूत्र कि छारीयता बढ़ जाती है 

H+ तथा NH4 आयन के निकलने से रुधिर की PH  6-8 बनी रहती है जिसमे परिवर्तन होना हानिकारक होता है 


चाय, काफी, अल्कोहल, आदि के सेवन से मूत्र कि मात्र बढ़ जाती है तथा इन्हें (Diuretics) कहते है

 
सभी जानकारी हिंदी में पाने के लिए आप हमें किसी भी सोशल नेटवर्क पर falllow कर सकते है 


आगे फिल्ट्रेशन कैसे होता है उसे हम अगले पोस्ट में लिखेंगे 
ये पोस्ट आपको कैसा लगा आप हमें जरुर बताये 
धन्यवाद








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