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Non-specific defence mechanism(गैर-विशिष्ट रक्षा तंत्र)

                                IMMUNE RESPONSE( अप्रतिरक्षित अनुक्रिया )







हमारे शरीर में रोगाणुओं से रक्षा करने के लिए दो प्रकार के रक्षा तन्त्र पाये जाते हैं  - 
(1)अविशिष्ट रक्षा तन्त्र (NON-SPECIFIC DEFENSE MECHANISM)
(2) प्रतिरक्षा तन्त्र  ( IMMUNITY SYSTEM) 
अविशिष्ट रक्षा तन्त्र  -






 हमारे शरीर की बाहरी त्वचा रोगाणुओं के प्रवेश को रोकती है । दरअसल त्वचा के नीचे श्वेद ग्रंथियां पायी जाती है जो विभिन्न प्रकार के पदार्थों का श्रावण करती है, ये सभी पदार्थ त्वचा के ऊपरी सतह पर आकर त्वचा को अम्लीय बना देते है क्योकि ये पदार्थ अम्लीय प्रकृति के होते है जिनका PH - 3.0 से 5.0 तक होता है।
जब हमारे शरीर की बाहरी त्वचा पर कोई भी जीवाणु आक्रमण करता है तो इन पदार्थों में पाया जाने वाला एक विशेष एन्जाइम ( लाइसोजाइम एन्जाइम) जीवाणुओं की कोशिका का लयन कर देती है जिसके कारण जीवाणु त्वचा पर पनप नहीं पाते  ।

लाइसोजाइम एन्जाइम के कार्य 







" यही लाइसोजाइम एन्जाइम हमारी नाक, कान, आंख तथा जीभ की लार में पाया जाता है जिसके कारण कोई भी जीवाणु शरीर में प्रवेश करने से पहले की उनकी कोशिका का लयन कर देती है। "

नाक के बाल के कार्य - 





हमारी नाक में उपस्थित बाल एक छन्ने की भांति कार्य करता है , जब हम सांस लेते है तो वायु में उपस्थित धूल कण के साथ - साथ बहुत सारे हानिकारक जीवाणु भी नाक के जरिये अन्दर जाने की कोशिश करते है लेकिन इन बालों द्वारा इनको मुहाने पर ही रोक लिया जाता है।
चोट लगने पर घाव खुद से कैसे भर जाते है  / चोट लगने पर शरीर का कौन सा IMMUNE SYSTEM काम करता है ?
जब हमें चोट लगती है  और त्वचा कोशिकाएं क्षतिग्रस्त हो जाती है तो उस समय अविशिष्ट रक्षा तन्त्र ( NON SPECIFIC DEFENSE MECHANISM) काम करता है ।
इस क्रिया को शोध / प्रदाह ( INFLAMMATION) कहते है , इसके पांच चरण होते हैं - 
1- ऊष्मा 
2- लालपन
3- फुलाव
4- दर्द
5- भक्षी कोशिकाओं का आगमन
लिम्फ कोशिकाओं से उत्पन्न हिस्टामीन नामक रासायनिक पदार्थ के कारण  चोट के आस - पास की रक्त वाहिनियों में फैलाव बढ़ जाता है जिसके फलस्वरूप इनकी पारगम्यता बढ़ जाती है तथा भक्षकाणु(PHAGOCYTES)  निकलकर चोट वाले स्थान पर पहुचती है और हानिकारक जीवाणुओं का भक्षण कर लेती है ।
इस प्रकार मृत कोशिका के समूह को मवाद (PUB) कहते है।
चोट वाले स्थान पर ताप क्यूं बढ़ जाता है ?
इसके भी दो कारण है पहला यह कि चोट वाले स्थान पर हानिकारक जीवाणुओं द्वारा छोड़े गए विषैले पदार्थों के कारण 
दूसरा कारण यह हो सकता है कि श्वेत रक्त कणिकाओं के द्वारा विमुक्त रासायनिक पदार्थ , " पायरोजेन्स " भी हो सकता है।
कभी - कभी यह ताप हमारे पूरे शरीर पर भी प्रभावी हो जाता है।
अविशिष्ट प्रतिरक्षा की परिभाषा -  रोगाणुओं से प्रतिरक्षा के लिए ए अवरोध सभी प्रकार के संक्रमणों के विरुध्द कार्य करते हैं अत:  इन्हें अविशिष्ट प्रतिरक्षी तन्त्र कहते हैं। 


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